चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में | Chandrashekhar Azad ka jivan Parichay Hindi mein

दोस्तों आज हम इस लेख में चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय हिंदी में, Chandrashekhar Azad ka jivan Parichay Hindi mein के बारे में चर्चा करने वाले हैं दोस्तों चंद्रशेखर आजाद एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों के साथ काफी युद्ध भी लड़े थे और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में चंद्रशेखर आजाद ने गांधी जी का साथ भी दिया था चंद्रशेखर आजाद के अंदर बचपन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों की भावना थी और चंद्रशेखर आजाद जब अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने लगे तो चंद्रशेखर आजाद ने एक कसम खाई थी।

कि में अंग्रेजों के हाथों कभी नहीं मरूंगा फिर एक दिन चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों के द्वारा घेर लिया जाता है लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने अपने आप को ही गोली मार दी थी और वही शहीद हो गए थे आज हम चंद्रशेखर आजाद के बारे में इस लेख में संपूर्ण जानकारी को प्राप्त करेंगे और इसी के साथ हम इस महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जीवनी और उनके बचपन तथा उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में भी हम इस लेख में चर्चा करेंगे तो चलिए दोस्तों अब हम इस लेख में आगे चलते हैं।

चंद्रशेखर आजाद का प्रारंभिक जीवन

चंद्रशेखर आजाद एक महान क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ था इनका जन्म 23 जुलाई 1906 को एक ब्राह्मण परिवार में माना जाता है चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था तथा चंद्रशेखर आजाद के पिताजी का नाम सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जागरणी देवी था चंद्रशेखर आजाद के पिताजी सीताराम तिवारी अली राजपुर नामक शहर में नौकरी करते थे।

चंद्रशेखर आजाद के पिताजी की जागरणी देवी से पहले दो पत्नियों रह चुकी थी लेकिन किसी कारणवश उनकी मृत्यु हो गई थी चंद्रशेखर आजाद की माता जी का सपना था कि उनका बेटा संस्कृत का विद्वान बने लेकिन जिस जगह पर चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ था वहां पर भील जाति के बच्चे रहते थे जो तीर कमान और निशाना लगाने में निपुण माने जाते थे तो वहीं से चंद्रशेखर आजाद ने तीर कमान चलाना और निशाना लगाना सीख लिया था।

चंद्रशेखर का नाम आजाद कैसे पड़ा?

महात्मा गांधी के द्वारा 1921 में असहयोग आंदोलन चलाया गया था और जब यह आंदोलन चलाया गया था उस समय चंद्रशेखर की आयु मात्र 15 वर्ष की ही थी और 15 वर्ष की आयु में यह असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए थे जब चंद्रशेखर आजाद इस असहयोग आंदोलन में अपनी भूमिका निभा रहे थे उस समय इनको गिरफ्तार कर लिया गया था और यहां पर यह पहली बार गिरफ्तार हुए थे और उसके बाद चंद्रशेखर आजाद को जेल ले जाया गया और वहां पर हवालात में बंद कर दिया गया था दिसंबर का महीना था फिर भी चंद्रशेखर आजाद को ओढ़ने के लिए तथा बिछाने के लिए बिस्तर नहीं दिए थे जिस रात इनको हवालात में बंद किया गया था उसी रात एक इंस्पेक्टर चंद्रशेखर आजाद को देखने गया था और इनको देखकर वह आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि उस समय भी चंद्रशेखर आजाद दंड बैठक लगा रहे थे और उनका पूरा शरीर पसीने में नहा रहा था।

उसके बाद अगले दिन चंद्रशेखर आजाद को न्यायालय में ले जाया गया और मजिस्ट्रेट के सामने खड़ा किया गया था तो उसके बाद चंद्रशेखर आजाद से पूछा गया कि तुम्हारा नाम क्या है तो चंद्रशेखर आजाद ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरा नाम आजाद है उसके बाद मजिस्ट्रेट ने चंद्रशेखर आजाद से अपने पिताजी का नाम पूछा तो चंद्रशेखर आजाद ने जवाब दिया कि मेरे पिताजी का नाम स्वतंत्र हैं उसके बाद पता पूछने पर चंद्रशेखर आजाद के द्वारा जवाब दिया गया जेल चंद्रशेखर आजाद ने यह सब बोलने के बाद मजिस्ट्रेट ने उनको 15 कोड़े करने की सजा सुना दी थी चंद्रशेखर आजाद के द्वारा यह सब कहना पूरे बनारस में पल गया था और यहीं से चंद्रशेखर आजाद को आजाद के नाम से जाना जाने लगा था।

चंद्रशेखर आजाद का क्रांतिकारी के रूप में जीवन

1921 में गांधी जी के द्वारा असहयोग आंदोलन तो चलाया ही था लेकिन उसके अगले ही वर्ष 1922 में चोरा चोरी कांड की घटना हो गई थी और इसे गांधी जी काफी नाराज हो गए थे और उन्होंने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था और इसकी वजह से चंद्रशेखर आजाद तथा राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान गांधीजी जी से काफी नाराज हो गए थे और इसके बाद चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक एक संगठन में सक्रिय रूप से सदस्य बन गए थे चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहते थे लेकिन उनके पास धन की कमी थी और इसी दिन की कमी को दूर करने के लिए चंद्रशेखर आजाद और उनके कुछ साथियों ने 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड किया और इसमें उन्होंने सरकारी खजाने को लूट लिया था।

काकोरी कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद के कुछ साथियों को तो पुलिस के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था लेकिन आजाद को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी और इसके बाद लाल जी की मृत्यु हो गई थी जिसके कारण भी पूरा देश नाराज हो गया था उसके बाद अंग्रेजों से लाल जी की मृत्यु का बदला चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, तथा उनके कुछ क्रांतिकारी साथी लेना चाहते थे और उसके बाद इन सभी ने मिलकर 17 दिसंबर 1928 को एक ब्रिटिश अधिकारी जिसका नाम सांडर्स था उसको गोली मार दी थी।

उसके बाद महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अपना कुछ समय झांसी में रहकर ही बिताया था झांसी के पास ही लगभग 15 किलोमीटर दूर ओरछा नामक स्थान पड़ता था और इस स्थान पर चंद्रशेखर आजाद निशाने का अभ्यास करने के लिए जाते थे और इसके साथ ही यह अपने कुछ साथियों को भी निशानेबाजी का अभ्यास करवाते थे इस दौरान चंद्रशेखर आजाद ने अपना साधु का रूप भी धारण किया था और इन्होंने अपना जीवन का कुछ समय अध्यापन कार्य में बिताया था।

चंद्रशेखर आजाद द्वारा असेंबली में बम विस्फोट करना

चंद्रशेखर आजाद तथा उनके कुछ साथी जो ब्रिटिश सरकार के विरोधी थे और यह भारत को आजाद करवाना चाहते थे चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में असेंबली में बम विस्फोट किया गया था और इसमें चंद्रशेखर आजाद का साथ भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने दिया था इन सब ने मिलकर 8 अप्रैल 1929 को यह बम विस्फोट किया था और इसका स्पष्ट उद्देश्य यह था कि यह अंग्रेजो के द्वारा जो काले कानून बनाए गए थे उनका विरोध करना था।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन

चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन के सदस्य थे लेकिन जब काकोरी कांड डकैती हुई थी उसके बाद उसमें जो आरोपी गिरफ्तार हुए थे उनको सजा सुनाई गई और इस संगठन को निष्क्रिय घोषित कर दिया गया था इस संगठन को निष्क्रिय करने के बाद फिरोजशाह कोटला में एक गुप्त सभा आयोजित हुई और इस सभा में भगत सिंह को प्रचार करने की जिम्मेदारी सौंप गई थी और इस गुप्त सभा में इस बात का निर्णय लिया कि जो संगठन निष्क्रिय किया गया है उसका वापस से पुनर्गठन किया जाएगा और उसके बाद इस संगठन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया गया था इस संगठन में चंद्रशेखर आजाद को एक प्रमुख के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

Chandrashekhar Azad के बारे में कुछ रोचक तथ्य

चंद्रशेखर आजाद एक महान क्रांतिकारी थे और हमेशा से चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथ एक पिस्टल रखी थी वर्तमान समय में यह पिस्टल इलाहाबाद के म्यूजियम में रखी है चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में एक ही बात कही है कि “हम जब तक जिएंगे तब तक दुश्मनों की गोलियों का सामना करते रहेंगे आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे”

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु

चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को अपने मित्रों से मिलने गए थे लेकिन वहां पर अंग्रेजों के द्वारा इनको चारों तरफ से घेर लिया गया था और अपने आप को समर्पण करने को बोला था लेकिन वहां पर चंद्रशेखर आजाद ने बहुत सारी गोलाबारी की और अंत में एक गोली को खुद को मार लिया क्योंकि उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक वह जीवित हैं तब तक तो अंग्रेजों के हाथों नहीं मारेंगे उसके बाद अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आजाद के शरीर को रसूलाबाद घाट भेज दिया और वहां पर उनका अंतिम संस्कार कर दिया।

FAQ :-

चंद्रशेखर आजाद का जन्म कब हुआ था?

Chandrashekhar Azad का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था।

चंद्रशेखर आजाद के माता-पिता का नाम क्या था?

चंद्रशेखर आजाद के माता का नाम जागरणी देवी तथा पिता का नाम सीताराम तिवारी था।

चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन में कौन से कार्य किए थे?

चंद्रशेखर आजाद ने भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इन्होंने काकोरी कांड डकैती में भी अपनी मातृभूमि का निभाई थी और असेंबली में बम भी इन्हीं के द्वारा फेंका गया था।

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु कब हुई थी?

चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 को जब यह अपने मित्रों के साथ भेंट करने गए थे तो वहां पर अंग्रेजों के द्वारा गैर लिया गया और इन्होंने अपने आप को गोली मार ली थी उसके बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।

अंतिम शब्द :-

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