Kabir Das biography in Hindi :- दोस्तों आज इस लेख में हम कबीर दास बायोग्राफी इन हिंदी, Kabir Das biography in Hindi, Kabir Das biography इन सब की चर्चा हम इस लेख के माध्यम से करने वाले हैं दोस्तों कबीर दास को हर कोई जानता है कि यह एक महान समाज सुधारक थे और समाज सुधारक के साथ-साथ कबीर दास कवि एवं संत भी थे कबीर दास जी ने अनेक कविताएं भी लिखी थी तथा इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से जो भी रचनाएं इन्होंने की है उनके माध्यम से इन्होंने समाज में बुराइयों को मिटाया था और इसी के कारण इनका समाज सुधारक के नाम से जाना जाता था
कबीर दास जी धर्म तथा जातिवाद के भेदभाव से दूर रहते थे और इन्होंने इन सब से ऊपर उठकर नीति की बातों को बताया था और इसी वजह से कबीर दास जी से हिंदू लोग तथा मुसलमान लोग दोनों समुदाय के लोग ही कबीर दास जी की आलोचना करते थे लेकिन जब कबीर दास जी की मृत्यु हो गई थी तो उस समय हिंदू तथा मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों ने कबीर दास जी को अपने हिसाब से संत माना था कबीर दास जी को भक्ति काल के सबसे सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता था
कबीर दास जी निराकार ब्रह्म की उपासना करते थे तथा इनका उपदेश देते थे इनको रहीम दास जी तथा सूरदास जी के समय से भी पहले के कवि माना जाता है दोस्तों अब हम आगे इस लेख में कबीर दास जी के बारे में और भी जानकारी प्राप्त करने वाले हैं इसलिए आप अंत तक इस लेख में जरूर बने रहे तो चलिए दोस्तों अब हम कबीर दास जी बायोग्राफी इन हिंदी के बारे में जानते हैं
Kabir Das biography in Hindi
कबीर दास जी को समाज सुधारक के नाम से जाना जाता है और इनका जन्म 1398 ई को हुआ था कबीर दास जी का जन्म काशी नामक शहर में हुआ था हालांकि कुछ विद्वान ऐसे भी है जो इस जन्म को मानता नहीं देते हैं और कबीर दास जी का जन्म 1440 ई को मानते हैं ऐसा माना जाता है कि कबीर दास जी का जन्म एक विधवा महिला से हुआ था जो ब्राह्मणी समुदाय से निवास करती थी कबीर दास जी के समय विधवा महिलाओं को समाज में किसी भी प्रकार का दर्जा नहीं दिया जाता था और इसी वजह से कबीर दास जी की मां ने कबीर दास जी को त्यागने का निश्चय कर दिया था और उसके बाद कबीर दास जी को नदी के किनारे एक टोकरी में रखकर वहां से यह विधवा महिला चली गई थी
लेकिन जिस नदी के किनारे कबीर दास जी को टोकरी में छोड़ा गया था उसी नदी के किनारे एक नीऊ तथा नीमा नाम कि जुलाहा दंपति रहती थी और उनके कोई संतान नहीं थी जब कबीर दास जी की रोने की आवाज उनको सुनाई दी तो वह नदी की तरफ दौड़ी हुई आई और देखा कि टोकरी में कोई बच्चा रो रहा था और फिर बाद में उन्होंने कबीर दास जी को गोद में उठाया और भगवान के द्वारा दिया गया उपहार समझकर उनको अपना पुत्र मान लिया था और तभी से कबीर दास जी का लालन पालन भी होने लग गया था
कुछ विद्वान ऐसे भी मानते हैं कि कबीर दास जी को तालाब के किनारे से जिन जुलाहा दंपति ने उठाया था वह मुसलमान समुदाय से निवास करती थे तो इस प्रकार कबीर दास जी ने अपना प्रारंभिक जीवन मुस्लिम परिवार में ही जीया था कबीर दास जी ने शिक्षा प्राप्त नहीं की थी और यह अनपढ़ ही रहे थे इन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी सीखा था वह अनुभव के माध्यम से ही सीखा था कबीर दास जी ने रामानंद के माध्यम से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति की थी तथा प्रभु भक्ति का अर्थ भी रामानंद की कृपा से ही समझ में आया था
कबीर दास जी का गुरु के साथ जीवन
कबीर दास जी अपना प्रारंभिक जीवन उत्तर प्रदेश के काशी शहर में ही बिताया था और इनका लान पालन भी काशी में ही मुस्लिम जुलाहा दंपति के परिवार में ही हुआ था उसके बाद कबीर दास जी को रामानंद जी के बारे में पता चला था जो कबीर दास जी के समय के सबसे महान हिंदू संत माने जाते थे रामानंद जी काशी में ही निवास करते थे तथा वहां पर आने वाले लोगों तथा अपने शिष्यों को विष्णु जी में आसक्ति के उपदेश देते थे और वह कहते थे कि भगवान तो हर इंसान में निवास करते हैं तथा हर चीज में भगवान निवास करते हैं
जब कबीर दास जी को गुरु रामानंद के बारे में पता चला था तो वह कुछ दिनों के बाद ही गुरु रामानंद जी के आश्रम में आ गए थे तथा रामानंद जी के द्वारा जो उपदेश दिया जाता था उनको वह सुनने लग गए थे उसके बाद कबीर दास जी हिंदू धर्म के वैष्णव की तरफ अग्रसर होने लग गए थे कबीर दास जी ने अपना प्रथम गुरु रामानंद जी को ही माना था
कबीर दास जी ने सूफी धारा को भी अपनाया था कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि कबीर दास जी ने अपने गुरु रामानंद जी से ज्ञान प्राप्त किया था और उसके बाद वह संत बन गए थे और कबीर दास जी ने भगवान श्री राम को ही अपना भगवान मान लिया था
कबीर दास जी की प्रमुख विशेषताएं क्या है
कबीर दास जी की प्रमुख विशेषताएं निम्न प्रकार से हैं
चिंतनशील व्यक्ति
कबीर दास जी को चिंतनशील इंसान माना जाता था क्योंकि कबीर दास जी ने अपना ज्यादातर समय काव्य रचना में ही बिताया था और काव्य रचना के बारे में सोच विचार करने में ही कबीर दास जी ने अपना अधिकांश समय बिताया था कबीर दास जी ने समाज में जितने भी बुराइयां मौजूद थी उनके बारे में चिंतन किया था तथा उन्होंने काव्य खण्डों की रचना भी की थी और इन्हीं रचनाओं के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों को खत्म किया था
कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं को स्पष्टवादी तथा मार्मिक रूप दिया था उन्होंने कठिन भाषण को त्याग के साधारण तथा लोकमानस में की जाने वाली रचनाओं वाली भाषाओं का प्रयोग कबीर दास जी ने किया था
एकांत प्रिय व्यक्ति
कबीर दास जी बचपन से ही अपना जीवन एकांत में ही गुजारा करते थे क्योंकि कबीर दास जी को अकेले रहना काफी पसंद होता था और एकांत प्रिय होने के कारण ही कबीर दास जी ने अपनी बुद्धि में बहुत विकास किया था कुछ इतिहासकार ऐसा भी मानते हैं कि कबीर दास जी ने अपने जीवन में शादी नहीं की थी और वह आजीवन अविवाहित ही रहे थे
साधु सेवी व्यक्ति
कबीर दास जी के अनुसार व्यक्ति के जीवन में गुरु का सबसे बड़ा स्थान होता है कबीर दास जी ने सगा संबंधी के रूप में सबसे पहले गुरु को ही माना था और गुरु के प्रति ही वह आसक्त रहे थे कबीर दास जी ने निराकार ब्रह्म को माना था और इनको मानने के बाद ही उन्होंने सांसारिक जीवन में सार्थकता पर विश्वास किया था कबीर दास जी निराकार ब्रह्म को मानते हुए ही एक साधु के रूप में बदल गए थे कबीर दास जी ने मूर्ति पूजा का खंडन किया था और बाह्य आडंबरों को भी नाकारा था और यह बोला था कि हम सभी तो एक ही ईश्वर की संतान माने जाते हैं
धर्म पर कबीर दास जी के विचार
कबीर दास जी ने धर्म तथा जाति भेदभाव पर विरोध किया था तथा वह सभी को एक ही ईश्वर की संतान मानते थे वह हिंदू तथा मुसलमान या फिर अन्य धर्म के सभी व्यक्तियों को एक ही ईश्वर की संतान मना करते थे कबीर दास जी ने बाह्य आडंबरों को नकारा था तथा इनकी कटु शब्दों में आलोचना की थी और जिस धर्म के लोग ईश्वर को अलग-अलग तरह से अपनाते थे उनकी भी कबीर दास जी ने आलोचना की थी कबीर दास जी ने वैष्णव तथा सूफी वादी धारा को ही अपनाया था कबीर दास जी के गुरु ने कहा था कि भगवान तो हर व्यक्ति में निवास करता है तथा हर चीज में भगवान निवास करता है उनमें किसी भी प्रकार का कोई विभेद नहीं है
कबीर दास जी सिर्फ और सिर्फ मन की पूजा पर ही विश्वास करते थे कबीर दास जी ने मूर्ति पूजा तथा व्रत आदि का कटु शब्दों में व्यंग्य कसा कबीर दास जी मानते थे कि यदि मनुष्य निराकार ब्रह्म का स्मरण करता है तो उसका अहंकार स्वत ही मिट जाता है
कबीर दास जी द्वारा रचित रचनाएं
कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में भेदभाव ऊंच नीच तथा धार्मिक भेदभाव आदि की कटु आलोचना की थी कबीर दास जी की प्रमुख रचनाओं के संकलन को बीजक के नाम से जाना जाता था बीजक को तीन भागों में बांटा गया है
- रमैनी
- साखी
- सबद
कबीर दास जी ने अपने जीवन में समाज सुधार के रूप में भी बहुत सारे कार्य किए थे और समाज सुधार के लिए कबीर दास जी द्वारा जो कार्य किया था उनका संकलन इनके शिष्य धर्मदास के माध्यम से किया था कबीर दास जी के द्वारा आत्मावत सर्व भूतेषु के मूल्यों को ही व्यक्त किया था
कबीर दास जी ने अपनी रचनाओं में स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया था तथा अहंकार, नैतिक जीवन के मूल्य, सदाचार, संसार की नश्वरता इत्यादि पर कबीर दास जी के द्वारा खुलकर रचना की गई थी ऐसा माना जाता है कि कबीर दास जी ने शिक्षा प्राप्त नहीं की थी और उनको लिखना भी नहीं आता था लेकिन कबीर दास जी अपने शिष्य धर्मदास जी के माध्यम से लेख को लिखवाते थे
कबीर दास जी से संबंधित पुस्तकें
- कबीर दोहावली
- कबीर जी की रचना बीजक
- कबीर जी के दोहे
मृत्यु
कुछ इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि कबीर दास जी की मृत्यु 1518 ईस्वी में ही हुई थी और जब उनकी मृत्यु हुए थी तब कबीर दास जी की उम्र लगभग 120 वर्ष थी कबीर दास जी की मृत्यु उत्तर प्रदेश के एक नगर मगहर में हुई थी एक किवदंती मानती है कि कबीर दास जी की मृत्यु के समय हिंदुस्तान मुस्लिम दोनों समुदाय के व्यक्ति कबीर दास जी की मृत्यु की नैया उठाने के लिए मौजूद थे हिंदू धर्म के लोग कबीर दास जी को हिंदू धर्म के मानते हैं तथा मुस्लिम समुदाय के लोग कबीर दास जी को मुस्लिम मानते हैं और इस प्रकार दोनों धर्म में वाद विवाद हो गया था
और अंत में यह निर्णय निकल गया था कि कबीर दास जी के आधे शरीर को हिंदू समुदाय के माध्यम से जलाया जाएगा तथा आधे शरीर को मुस्लिम समुदाय की रीति रिवाज के अनुसार दफनाया जाएगा इस प्रकार के निर्णय करने के बाद जब कबीर दास जी का अंतिम संस्कार करने के लिए उनके मृत शरीर से चादर उठाई तो वहां पर फूल ही फूल दिखाई दिए थे और वहां पर मौजूद लोगों ने माना कि कबीर दास जी तो स्वर्ग ही सुधर गए हैं
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इसके बाद दोनों धर्म के लोगों ने फूलों को आधा-आधा बांटा तथा उनका अंतिम संस्कार गंगा में विसर्जित करके किया था और कबीर दास जी जिस स्थान पर हुई थी उस स्थान का नाम बदलकर संत कबीर नगर रखा गया था कुछ इतिहासकार ऐसे भी हैं जो कबीर दास जी की मृत्यु 1440 ई को मानते हैं इस प्रकार कबीर दास जी की मृत्यु का स्पष्ट विवरण नहीं है और ना ही उनके जन्म का स्पष्ट विवरण है
FAQ :-
कबीर दास जी की मृत्यु जिस जिले में हुई थी उस जिले का नाम क्या रखा गया?
कबीर दास जी की मृत्यु जिस जिले में हुई थी उस जिले का नाम संत कबीर नगर रखा गया था।
कबीर दास जी के प्रमुख रचनाएं कौन सी हैं?
कबीर दास जी की रचनाओं के संकलन को बीजक के नाम से जाना जाता था और इनको तीन भागों में बांटा गया है सारी सबद तथा रमैनी।
कबीर दास जी सबसे ज्यादा क्यों प्रसिद्ध हुए थे?
कबीर दास जी इसलिए प्रसिद्ध हुए थे क्योंकि इन्होंने समाज में व्याप्त ऊंच नीच ,जातिगत भेदभाव, धार्मिक भेदभाव तथा बुराइयों को दूर किया था।
कबीर दास जी विवाहित थे या अविवाहित?
कुछ इतिहासकार ऐसे हैं जो कबीर दास जी को विवाहित मानते हैं तथा कुछ इतिहासकार ऐसे भी है जो कबीर जी को अविवाहित मानते हैं इनका स्पष्ट विवरण नहीं है।
कबीर दास जी की मृत्यु कब हुई थी?
कबीर दास जी की मृत्यु उत्तर प्रदेश के एक नगर में 1518 ईस्वी में हुई थी।
अंतिम शब्द :-
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