रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में | Rani Lakshmi Bai ka jivan Parichay Hindi mein

दोस्तों आज हम रानी लक्ष्मीबाई का जीवन परिचय हिंदी में, रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय इन हिंदी, Rani Lakshmi Bai biography in Hindi के बारे में इस लेख के माध्यम से चर्चा करेंगे रानी लक्ष्मी बाई को तो आप लोग जानते हैं क्योंकि यह एक ऐसी वीरांगना थी जिसने हमारे देश को अंग्रेजों के गुलामी से आजादी दिलवाने में अपने जीवन का बलिदान दिया था रानी लक्ष्मी बाई का नाम वर्तमान समय में हमारे देश में गौरव के साथ एवं सम्मान के साथ लिया जाता है

Rani Lakshmi Bai ka jivan Parichay Hindi mein

रानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत सारे युद्ध भी लड़े थे और इन्होंने अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए महिलाओं की एक सेना भी तैयार की थी रानी लक्ष्मी बाई के बारे में अनेक कविताएं भी आती हैं जो उनके पराक्रम एवं शोर्य पर लिखी गई थी हमारे देश को अंग्रेजों के गुलामी से आजादी दिलवाले में अपने अहम भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के जीवन परिचय के बारे में आज हम इस लेख में संपूर्ण जानकारी को प्राप्त करने वाले हैं

इसलिए दोस्तों आप इस लेख में अंत तक जरूर बन रहे और रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में को अवश्य जाने क्योंकि इस वीरांगना के बारे में आपको जानना बहुत जरूरी है की कैसे इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी तथा 1857 की क्रांति में भी इन्होंने अपने अहम भूमिका निभाई थी तो चलिए दोस्तों अब हम रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में जान लेते हैं

रानी लक्ष्मी बाई का प्रारंभिक जीवन

रानी लक्ष्मी बाई भारत की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली वीरांगनाओं में से एक मानी जाती हैं रानी लक्ष्मी बाई का जन्म वाराणसी में हुआ था तथा इनका जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था रानी लक्ष्मीबाई को बचपन में मणिकर्णिका के नाम से पुकारा जाता था और प्यार से लोग इन्हें मनु नाम से भी पुकार लेते थे रानी लक्ष्मीबाई के पिताजी का नाम मोरोपंत तांबे था तथा मणिकर्णिका के माताजी का नाम भागीरथी था ऐसा माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई की माताजी बहुत ही कर्तव्य परायण एवं सुसंस्कृत एवं धर्मनिष्ठ महिला थी

रानी लक्ष्मी बाई का परिवार एक मराठी ब्राह्मण परिवार से निवास करता था रानी लक्ष्मीबाई के पिताजी मोरोपंत तांबे बाजीराव की सेवा में रहा करते थे कुछ विद्वान बताते हैं कि जब रानी लक्ष्मीबाई की उम्र लगभग 5 वर्ष की थी तब उनकी माताजी की मृत्यु हो जाती है और माता जी की मृत्यु होने के बाद रानी लक्ष्मीबाई का ध्यान उनके पिताजी ही रखा करते थे

पिताजी के द्वारा जब रानी लक्ष्मीबाई पर ध्यान नहीं दिया जा सका तो रानी लक्ष्मी बाई के पिताजी उनको बिठूर ले गए थे और अपने साथ बाजीराव के दरबार में भी रानी लक्ष्मीबाई को ले जाने लग गए थे मणिकर्णिका बचपन से ही बहुत सुंदर दिखाई देती थी और इनकी चंचलता ने प्रत्येक व्यक्ति का मन मोह लिया था कुछ समय के बाद मराठा बाजीराव ने मणिकर्णिका का नाम बदलकर छबीली रख दिया था

रानी लक्ष्मी बाई की प्रारंभिक शिक्षा

रानी लक्ष्मी बाई जब अपने पिताजी के साथ बिठूर आई थी तो वहां पर आने के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने घुड़सवारी करना, शस्त्र विद्याएं, एवं मल्लविद्या आदि की शिक्षा प्राप्त की थी उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई बचपन में अपने पिताजी के साथ बाजीराव के दरबार में जाती थी तो वहां पर वह बाजीराव के बच्चों के साथ ही शिक्षा को प्राप्त करने लग जाती थी बचपन से ही रानी लक्ष्मीबाई बहुत बुद्धिमान थी

और अपनी इसी बुद्धि के कारण वह बहुत कम उम्र में ही घुड़सवारी करना सीख रही थी उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने तलवार चलाना सीखा और जब भी रानी लक्ष्मीबाई अपने सहपाठियों के साथ प्रतियोगिता करती थी तो यह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती थी बचपन से ही रानी लक्ष्मीबाई के अंदर वीरता एवं निडरता तथा दृढ़ संकल्प के गुण दिखाई देते थे और इस प्रकार बचपन से ही रानी लक्ष्मीबाई सभी विध्याओं में निपुण हो गई थी

रानी लक्ष्मी बाई का वैवाहिक जीवन

बहुत कम उम्र में ही रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से कर दिया गया था और विवाह के पश्चात ही रानी लक्ष्मीबाई झांसी की रानी बन चुकी थी झांसी की रानी 1842 में विवाह के बाद बनी थी और विवाह के बाद ही रानी लक्ष्मीबाई का नाम मणिकर्णिका से रानी लक्ष्मीबाई रखा गया था विवाह के कुछ वर्षों के बाद 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया था लेकिन किसी कारण वश रानी लक्ष्मी बाई का पुत्र मात्र 4 महीने की उम्र में ही मृत्यु को प्राप्त कर चुका था

पुत्र की मृत्यु के बाद पूरी झांसी शोक में डूब गई थी उसके बाद 1853 ईस्वी में झांसी की रानी के पति गंगाधर राव का स्वास्थ्य भी काफी बिगड़ चुका था और उन्होंने रानी लक्ष्मी बाई को दत्तक पुत्र लेने की सलाह प्रदान की उसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी पति की बात मानते हुए लगभग 5 वर्ष के बालक जो उनके ही परिवार का था उसकी गोद ले लिया था और उसका नाम दामोदर राव रखा था लेकिन कुछ दिनों के बाद ही 21 नवंबर 1853 को झांसी की रानी के पति गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई थी

रानी लक्ष्मी बाई का झांसी का शासन

गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात झांसी का राज का रानी लक्ष्मीबाई के हाथों में आ गया था और रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र को लेकर राज दरबार में आती थी और वहां का सारा कामकाज संभालती थी लेकिन जब अंग्रेजों को पता चला कि झांसी के राजा राव गंगाधर की मृत्यु हो गई है तो अंग्रेज झांसी पर अधिकार करना चाहते थे झांसी को अधिकार करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी हर संभव प्रयास करने लग गई थी लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों को झांसी छीन ने नहीं दिया था झांसी की रानी ने अंग्रेजों के साथ काफी युद्ध लड़े थे

और अपने राज्य की रक्षा भी की थी झांसी की रानी ने हमेशा से अपनी प्रजा की सेवा की थी रानी लक्ष्मी बाई ने एक योद्धा के रूप में और एक रानी की तरह अपने संस्कारों को कायम रखते हुए झांसी की अंग्रेजों से सुरक्षा की थी रानी लक्ष्मी बाई ने अपने राज्य की सुरक्षा के लिए एवं अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ काफी युद्ध भी लड़े थे रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी सुना तैयार करने के लिए अपने महल के अंदर ही बहुत सारे अस्त्र-शस्त्र एवं घुड़सावरी का प्रबंध किया था और इन्होंने महिलाओं की एक सी भी तैयार की थी और उनको अच्छे से अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान भी दिया था

ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई

जैसे ही झांसी के राजा राव गंगाधर की मृत्यु हो गई थी तो उसके बाद अंग्रेजों की नजर झांसी के ऊपर पड़ गई थी और अंग्रेजों ने दत्तक पुत्र को राजा मानने से भी मन कर दिया था क्योंकि अंग्रेजों ने उस समय राज्य हड़प नीति चला रखी थी इस नीति के तहत राजा की मृत्यु के बाद राजा का पुत्र ही उत्तराधिकारी माना जाता था कोई भी दत्तक पुत्र उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा जिस भी राज्य के राजा की मृत्यु हो जाती थी और उसके कोई संतान नहीं होती थी तो उस राज्य का शासन अंग्रेजों के द्वारा चलाया जाता था तो इसी नीति के तहत राव गंगाधर के दत्तक पुत्र दामोदर को उत्तराधिकारी मानने से अंग्रेजों ने इनकार कर दिया था

अंग्रेजों ने राज्य हड़प नीति के तहत इस मुकदमे को अदालत में पेश किया था लेकिन बाद में इस मुकदमे को खारिज कर दिया गया था लेकिन अंग्रेज अधिकारियों ने झांसी में जो भी खजाना था उस सारे खजाने को जब्त कर लिया था और राव गंगाधर ने अंग्रेजों से जो भी कर्ज लिया था वह सारा कर्ज भी लक्ष्मीबाई का जो वर्ष भर का जो खर्चा होता था उसमें से काटने का आदेश दे दिया था लेकिन रानी लक्ष्मीबाई अपने झांसी के किले को छोड़कर कुछ समय के लिए रानी महल में चली गई थी लेकिन रानी महल से ही रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी झांसी को अंग्रेजों से छुड़ाने का संकल्प लिया था

झांसी के युद्ध की शुरुआत

1857 की क्रांति प्रारंभ हो गई थी और झांसी का युद्ध 1857 की क्रांति का प्रमुख केंद्र माना गया था लेकिन झांसी की रानी अंग्रेजों से अपनी झांसी को छुड़ाने के लिए लगातार नई-नई प्रक्रिया को अपना रही थी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेवा में पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी शामिल किया था झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की महिलाओं की सेवा में एक झलकारी बाई नाम की एक महिला थी जिनकी शक्ल रानी लक्ष्मीबाई से मिलती-जुलती थी तो उसको भी महिलाओं की सेवा का सेनापति बनाया गया था

झांसी की रानी ने अपने झांसी को अंग्रेजों से बचाने के लिए अपनी एक सेना तैयार की झांसी के किले पर अंग्रेजों के अलावा भी पड़ोसी राज्य हमला करते रहते थे पड़ोसी राज्यों में औरछा तथा दतिया नामक राज्य शामिल थे लेकिन झांसी की रानी महारानी लक्ष्मीबाई ने इनका भी सामना जमकर किया था और इन सबको धूल चटा दी थी उसके बाद 1858 ईस्वी में अंग्रेजों के द्वारा झांसी की ओर घेराव किया जा उसके बाद झांसी की रानी ने इनका भी डटकर सामना किया था ऐसा माना जाता है कि लगभग दो हफ्ता तक झांसी की रानी ने अंग्रेजों के साथ युद्ध किया था लेकिन अंग्रेजों ने पूरी झांसी के ऊपर कब्जा कर लिया था और रानी अपने पुत्र को पीठ के पीछे बांद कर झांसी के किले से अपने घोड़े के साथ नीचे कूद गई थी लेकिन कोई भी अंग्रेज वहां से कूद नहीं पाया था

उसके बाद झांसी की रानी का साथ तात्या टोपे ने दिया था झांसी की रानी तथा तात्या टोपे दोनों ने मिलकर ग्वालियर पर अधिकार किया था उसके बाद अंग्रेज यहां पर भी आ गए थे लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से यहां पर भी मुकाबला किया था और 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के साथ लड़ते हुए अपने प्राणों को त्याग दिया था कुछ विद्वानो ने रानी लक्ष्मी बाई को मृत्यु घोषित कर दिया था लेकिन कुछ विद्वान ऐसे होते हैं जो आज तक पता नहीं कर पाए की रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु हुई थी

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FAQ :-

Rani Lakshmi Bai का बचपन का नाम क्या था?

रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था लेकिन प्यार से लोग इन्हें मनु कह कर पुकारते थे।

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु कब मानी जाती है?

रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु 18 जून 1858 को मानी जाती हैं।

Rani Lakshmi Bai के घोड़े का नाम क्या था?

रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम चेतक माना जाता है।

रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र का नाम क्या था?

रानी लक्ष्मी बाई के दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव था।

Rani Lakshmi Bai के पति का नाम क्या था?

Rani Lakshmi Bai के पति का नाम गंगाधर राव था।

अंतिम शब्द :-

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