सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10 | Surdas ka jivan Parichay class 10

नमस्कार दोस्तों, आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10, Surdas ka jivan Parichay class 10 के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा करने वाले हैं सूरदास एक कवि हैं जो भक्ति काल के सबसे प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं सूरदास जी सगुण धारा के कभी माने जाते हैं ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते रहते थे और यह भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त भी थे इन्होंने अपनी रचनाओं में कृष्ण भगवान का भरपूर वर्णन किया है

दोस्तों यदि आप सूरदास जी के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं तो इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको विस्तार पूर्वक सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10 के बारे में बताएंगे इसलिए दोस्तों आप इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े क्योंकि हम आपके यहां पर सूरदास जी के बारे में विभिन्न प्रकार की जानकारी बताने वाले हैं तो सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10 निम्न प्रकार से हैं

सूरदास जी का जन्म और प्रारंभिक जीवन

कुछ इतिहासकार सूरदास जी का जन्म 1478 ई को मानते है और कुछ इतिहासकार अलग मानते हैं इनका जन्म रुनकता में किरोली नामक गांव में माना जाता है ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे लेकिन सूरदास जी के द्वारा जिन रचनाओं का वर्णन किया गया है तो उनके अंधेपन पर मतभेद माना जाता है भाव प्रकाश में ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक गांव में हुआ था कुछ विद्वान ऐसा मानते हैं कि सूरदास जी का जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में मानते हैं सूरदास जी का परिवार मथुरा और आगरा के मध्य में स्थित गऊघाट पर अपना जीवन यापन करते थे सूरदास जी की कोई भी पत्नी नहीं थी क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में कोई विवाह नहीं किया था इनके पिताजी रामदास सारस्वत थे इन्होंने अपनी रचनाएं ब्रजभाषा में की थी।

सूरदास जी की प्रारंभिक शिक्षा

जैसे कि आप लोग जानते हैं कि सूरदास जी का परिवार गऊघाट पर निवास करता था तो वहीं पर सूरदास जी की मुलाकात वल्लभाचार्य से हो जाती है और आगे जाकर सूरदास जी वल्लभाचार्य के शिष्य बन जाते हैं और वल्लभाचार्य के द्वारा ही सूरदास जी को कृष्ण भक्ति की ओर अग्रसर किया गया था सूरदास जी तथा वल्लभाचार्य दोनों के मध्य में एक रोचक तथ्य यह माना जाता है कि इन दोनों की आयु में अंतर मात्र 10 दिन का था वल्लभाचार्य जी का जन्मदिन 1534 विक्रांत संवत को हुआ था और सूरदास जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था वल्लभाचार्य का जन्म वैसाख कृष्ण एकादशी को तथा सूरदास जी का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को माना जाता है और इसी कारण से इनका अंतर 10 दिन का है इन्होंने शिक्षा वल्लभाचार्य के माध्यम से ही प्राप्त की थी।

सूरदास जी कृष्ण भक्ति की ओर अग्रसर

जब सूरदास जी ने वल्लभाचार्य से शिक्षा ग्रहण की थी तो उनके माध्यम से यह कृष्ण भक्ति की ओर अग्रसर हुए थे सूरदास जी ने अपनी कृष्ण भक्ति को ब्रजभाषा में ही लिखा था और सूरदास जी के द्वारा जितनी भी रचनाएं की गई थी तो इन सब की रचनाएं इनके द्वारा ब्रज भाषा में की गई थी और इसी के अनुसार सूरदास जी को ब्रजभाषा का एक महान कवि के रूप में भी माना जाता है ब्रजभाषा ब्रज क्षेत्र में काफी बोली जाती है और इसी भाषा में रहीम जी के द्वारा बिहार केशव तथा घनानंद आदि के द्वारा हिंदी साहित्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान है।

सूरदास जी के द्वारा रचित रचनाएं

सूरदास जी के द्वारा पांच ग्रन्थों की रचना की गई थी हिंदी साहित्य में इन्हीं पांच ग्रन्थों के प्रमाण मिलते हैं इनकी रचनाएं निम्न प्रकार से हैं

  • सूरसागर
  • साहित्य लहरी
  • सूरसारावली
  • ब्याहलो
  • नल दमयंती

सूरदास जी का अंधत्व

सूरदास जी की ऐसी बहुत सारी रचनाएं हैं जिनके माध्यम से ऐसा माना जाता है कि सूरदास जी जन्म के समय से ही अंधे हैं लेकिन सूरदास जी के द्वारा भगवान श्री कृष्ण के बारे में इतना वर्णन किया है की कुछ विद्वान तो यह स्वीकार ही नहीं करते हैं कि सूरदास जी जन्म के समय से ही अंधे थे इनके द्वारा भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य का सजीव चित्रण किया गया था तथा उनके रंग रूप आदि काफी इनके द्वारा विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया था और इसी कारण से कुछ विद्वान इनका जन्म के समय से अंधे नहीं मानते हैं।

सूरदास जी से संबंधित एक लोक कथा

बहुत सारी कहानियां ऐसी है जो सूरदास जी से जुड़ी हुई है और इन सभी कहानियों में से प्रमुख कहानी जो सुनने को मिल जाती है वह निम्न प्रकार से हैं –

एक मदन मोहन नाम का बहुत ही सुंदर लड़का था जिसकी बुद्धि भी काफी तेज थी और यह एक नवयुवक लड़का था वह रोजाना अपने गांव के पास में एक नदी बहती थी तो वहां पर जाता था और रोजाना गीत लिखा करता था लेकिन एक दिन ऐसा हुआ कि जिस नदी के किनारे वह रोजाना जाता था तो वहां पर एक नवयुवती जो काफी सुंदर भी थी तो उसको कपड़े धोते हुए मदन मोहन के द्वारा देख लिया जाता है उस स्त्री ने उस मदन मोहन को ऐसा आकर्षित किया कि उसने अपनी कविता को लिखना छोड़ दिया और सारा ध्यान उस युवती की तरफ चला गया

मदन मोहन को ऐसा लगने लग गया था कि यमुना नदी के किनारे कोई राधिका स्नान करके बैठ गई हो कुछ समय के बाद वह स्त्री भी मदन मोहन की तरफ देखते हैं और कुछ इस समय के बाद ही बातों का सिलसिला चलना प्रारंभ हो गया लेकिन यह बात मदन मोहन के पिता को पता चल जाती है और वह काफी क्रोधित भी हो जाते हैं और उसके बाद मदन मोहन तथा उनके पिता के बीच में काफी विवाद हुआ और मदन मोहन के द्वारा अपने घर का त्याग कर दिया गया था क्योंकि उस स्त्री के सुंदरता मदन मोहन के सामने से बिल्कुल भी नहीं जा रही थी

लेकिन एक दिन जब मदन मोहन एक मंदिर में बैठे थे तो वहां पर एक शादीशुदा महिला आ जाती है और मदन मोहन भी उस शादीशुदा महिला का पीछा करने लग जाते हैं जब मदन मोहन उस स्त्री का पीछा करते हुए उसके घर तक पहुंच जाते हैं तो उस स्त्री के पति के द्वारा दरवाजा खोल दिया जाता है और उनको अंदर बुला लिया जाता है उसके बाद मदन मोहन ने उस स्त्री तथा उसके पति से दो जलती हुई सिलाया मांगी थी और उसके बाद उनको अपनी आंखों में डाल लिया था और ऐसा माना जाता है कि इसी दिन से सूरदास जी का जन्म हुआ था।

मृत्यु

एक दिन क्या होता है कि सूरदास जी के गुरु वल्लभाचार्य जी तथा श्रीनाथजी और गोसाई विट्ठल नाथ जी आरती कर रहे थे तो उस समय सूरदास जी उपस्थित नहीं थे क्योंकि पहले तो रोजाना सूरदास जी आरती में उपस्थित रहते थे और यह आरती श्रीनाथजी की होती थी लेकिन गुरु वल्लभाचार्य समझ गए थे कि अब सूरदास जी का समय निकट आ चुका है जैसे ही आरती खत्म होती है तो सूरदास जी के गुरु तथा उनके कुछ शिष्य सूरदास जी की कुटिया में आ जाते हैं और वहां पर आकर देखते हैं कि सूरदास जी अचेत पड़े हुए हैं और 1642 विक्रम संवत में सूरदास जी की मृत्यु हो जाती हैं जिस स्थान पर सूरदास जी की मृत्यु हुई थी वर्तमान समय में उस स्थान पर सूरश्याम मंदिर की स्थापना की गई है।

Read More :-

FAQ :-

सूरदास जी का जन्म कब माना जाता है?

सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी को रुनकता में किरोली नामक गांव में माना जाता है लेकिन कुछ इतिहासकार इनका जन्म सीही नामक स्थान पर मानते हैं इनका जन्म सारस्वत ब्राह्मण परिवार में माना जाता है।

संत सूरदास जी के गुरु का नाम क्या था?

संत सूरदास जी के गुरु का नाम वल्लभाचार्य था और इन्हीं के द्वारा संत सूरदास जी श्री कृष्ण की भक्ति की ओर अग्रसर हुए थे।

संत सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?

संत सूरदास जी के प्रमुख रचनाएं सूरसागर, ब्याह लो, सूरसारावली, साहित्य लहरी आदि मानी जाती हैं।

सूरदास जी को किस काल के कवि माना जाता है?

सूरदास जी को भक्ति काल के प्रमुख कवि के रूप में माना जाता है और इसी के साथ ही यह ब्रजभाषा के एक महान कवि भी हैं।

अंतिम शब्द :-

दोस्तों हमने आपको आज सूरदास का जीवन परिचय कक्षा 10, Surdas ka jivan Parichay class 10 के बारे में विस्तार पूर्वक बता दिया है यदि दोस्तों हमारे द्वारा यह जानकारी जो दी गई है यह पसंद आती है तो आप इसको अपने मित्रों के साथ भी शेयर कर सकते हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी इनको आप शेयर कर सकते हैं

Leave a Comment