तुलसीदास का जीवन परिचय | Tulsidas ka jivan Parichay

दोस्तों आज इस लेख में हम तुलसीदास जी का जीवन परिचय, तुलसीदास जी की जीवनी, Tulsidas biography in Hindi, Tulsidas biography, biography of Tulsidas in Hindi इन सबकी चर्चा हम इस लेख के माध्यम से करेंगे दोस्तों तुलसीदास को तो सब लोग जानते हैं क्योंकि इनके द्वारा रामचरितमानस की रचना की गई थी तुलसीदास जी प्रारंभ से ही राम भक्ति में लीन रहा करते थे और इसी के चलते उन्होंने अपने जीवन में अनेक ग्रन्थों की रचनाएं भी की थी तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के एक महान कवि के रूप में जाने जाते हैं

और इसके साथ ही यह एक बैरागी साधु भी थे तथा तुलसीदास जी ने साहित्यकार एवं दार्शनिक रूप में अपनी भूमिका निभाई थी तुलसीदास जी के द्वारा रामचरितमानस जिसको वर्तमान समय में सर्वश्रेष्ठ कवियों में अपना 46वां स्थान प्राप्त हैं तुलसीदास जी ने अपने जीवन में रामचरितमानस की तो रचना की ही है लेकिन इसके अलावा भी इन्होंने अनेक काव्य की रचना की है जैसा कि गीतावली, वाल्मीकि ऋषि, संस्कृत रामायण, दोहावली आदि इन सब की रचना भी तुलसीदास जी के द्वारा ही की गई थी

तुलसीदास जी अपने जीवन के भगवान राम के सबसे सच्चे भक्त माने जाते हैं आज इन्हीं के बारे में हम इस लेख में संपूर्ण जानकारी को प्राप्त करने वाले हैं हम इस लेख के माध्यम से तुलसीदास का जीवनी, Tulsidas ka jivani, biography of Tulsidas in Hindi, तुलसीदास जी का जीवन परिचय के बारे में जानने की कोशिश करेंगे इसलिए दोस्तों आप इस लेख में अंत तक बन रहे और तुलसीदास जी का जीवनी को अवश्य पढ़ें तो चलिए दोस्तों अब हम बिना देरी किए तुलसीदास का जीवनी के बारे में चर्चा करते हैं

Tulsidas ka jivan Parichay

Full name गोस्वामी तुलसीदास
Nick name अभिनव वाल्मीकि तथा गोस्वामी इत्यादि
Age112 वर्ष मृत्यु के समय
Place of birth उत्तर प्रदेश के कासगंज क्षेत्र में
Place of death उत्तर प्रदेश के वाराणसी में
Religion हिंदू
Teacher नरसिंह दास
Philosophyवैष्णव

Tulsidas ji का परिवार ( family of Tulsidas ji )

तुलसीदास जी का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास था तथा इनका बचपन में रामबोला नाम से जानते थे तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई को माना जाता है और इनका जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज क्षेत्र में हुआ था तुलसीदास जी के पिताजी का नाम आत्माराम शुक्ल दुबे था तथा उनकी माता को हुलसी दुबे के नाम से जाना जाता था तुलसीदास जी की पत्नी का नाम बुद्धिमती था जिनका उपनाम रत्नावली था तुलसीदास जी का एक बेटा था जिसका नाम तारक था तुलसीदास जी के बेटे की मृत्यु शैशवावस्था में ही हो गई थी तुलसीदास जी का परिवार वैष्णव संप्रदाय से निवास करता था तुलसीदास जी को अन्य उपनाम से भी जाना जाता था जैसा कि गोस्वामी अभिनव वाल्मीकि आदि नाम से इनको जाना चाहता था

कुछ लोग ऐसे मानते थे कि तुलसीदास जी महर्षि वाल्मीकि के अवतार माने जाते हैं महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं है और कुछ विद्वान इस बात से सहमत हैं

Tulsidas ji का प्रारंभिक जीवन

तुलसीदास जी ने अपने जीवन में अनेक काव्य की रचना की थी जैसा कि आप लोग जानते ही हैं कि तुलसीदास जी का जन्म 1511 ई को उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुआ था और इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था लेकिन कुछ विद्वान इस बात से सहमत नहीं है और कुछ विद्वान मानते हैं कि इनका जन्म राजापुर जिले में चित्रकूट में माना जाता है अकबर को जो 1500 ई का सबसे बड़ा सम्राट माना जाता है वह तुलसीदास जी के समकालीन को ही माना जाता है तुलसीदास जी की मां हुलसी दुबे एक आध्यात्मिक महिला के रूप में मानी जाती थी तथा वह अपना जीवन एक ग्रहणी के रूप में बिताती थी ऐसा माना जाता है

कि तुलसीदास जी अपनी मां के गर्भ में लगभग 12 महीने तक रहे थे और जब इन्होंने अपना जन्म इस संसार में लिया तो उसे समय यह काफी हष्ट पुष्ट दिखाई दे रहे थे और तुलसीदास जी के जन्म के समय ही मुंह में दांत आ गए थे तुलसीदास जी के जन्म के बाद कुछ समय के बाद ही इन्होंने राम का नाम लेना प्रारंभ कर दिया था और इसी कारण से इनका बचपन से ही राम बोला नाम से जाना जाने लग गया था तुलसीदास जी के द्वारा यह सब करते हुए देखना वहां के लोगों के लिए काफी आश्चर्य चकित था तो इस प्रकार से तुलसीदास जी ने अपना प्रारंभिक जीवन बिताया था अब हम इनकी शिक्षा की बात करते हैं

Tulsidas ji की प्रारंभिक शिक्षा

तुलसीदास जी ने अपनी शिक्षा की शुरुआत अपने गुरु नरसिंह दास के आश्रम से शुरू की थी और उसके बाद जब तुलसीदास जी की आयु लगभग 7 वर्ष की हो गई थी तो तुलसीदास जी के माता-पिता ने तुलसीदास जी की शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए नरहरि बाबा के आश्रम में भेज दिया था लगभग 15 वर्ष की आयु तक तुलसीदास जी ने यहीं पर शिक्षा ग्रहण की थी इन्होंने इस आश्रम में रहते हुए सनातन धर्म, हिंदू साहित्य, ज्योतिष शास्त्र, व्याकरण, संस्कृत, आदि की शिक्षा इन्होंने इसी आश्रम में रहते हुए प्राप्त की थी अपने गुरु नरसिंह दास जी के द्वारा ही तुलसीदास जी का नाम गोस्वामी तुलसीदास रखा गया था जैसे ही तुलसीदास जी की शिक्षा समाप्त हो गई थी तो तुलसीदास जी पुनः अपने स्थान पर आ गए थे और वहां पर आते ही तुलसीदास जी महाभारत तथा रामायण जैसी कथाओं को लोगों को सुनाने लग गए थे

Tulsidas ji का तपस्वी बनने का सफर

तुलसीदास जी का विवाह 1526 ई को एक बुद्धिमती नाम की लड़की से हो गया था इस बुद्धिमती को रत्नावली के नाम से भी जाना जाता था शादी होने के बाद तुलसीदास जी तथा अपनी पत्नी बुद्धिमती दोनों राजापुर नामक स्थान पर रहते थे कुछ सालों के बाद ही इनके एक पुत्र हो गया था जिसका नाम तारक था लेकिन तुलसीदास जी ने अपने इस बेटे को शेशावस्था में खो दिया था अपने पुत्र की मृत्यु होने के पश्चात तुलसीदास जी अपनी पत्नी से और भी अधिक प्रेम करने लग गए थे और तुलसीदास जी पत्नी से अलगाव बिल्कुल भी सहन नहीं कर पाते थे

लेकिन एक दिन ऐसा आया कि तुलसीदास जी की पत्नी बुद्धिमती तुलसीदास जी को बिना कुछ बताएं ही अपने मायके चली गई थी लेकिन बाद में जब इसका पता तुलसीदास जी को चला तो तुलसीदास जी तुरंत ही रात में ही अपने ससुराल चले गए थे वह भी अपनी पत्नी से मिलने को ऐसा देखकर तुलसीदास जी की पत्नी बुद्धिमती बहुत ही ज्यादा शर्म महसूस करने लग गई थी और तुलसीदास जी को उनकी पत्नी के द्वारा यह बात कही गई थी

कि मेरा शरीर तो हड्डियों एवं मांस का बना हुआ है, जितना ध्यान आप मुझ पर दे रहे हैं यदि आप उतना ध्यान भगवान श्री राम पर देते तो आप इस संसार की मोह माया को त्याग कर शाश्वत तथा अमृता इन सब की आनंद की प्राप्ति आप कर सकते पत्नी के द्वारा यह सब कहते हुए सुनना तुलसीदास जी को तीर की तरह चुभ गया और इस समय तुलसीदास जी ने घर को त्यागने का निश्चय कर लिया था और संसार की इस मोह माया को त्याग कर तुलसीदास जी तपस्वी बन गए थे और तपस्वी बनते ही तुलसीदास जी अलग-अलग जगह पर भ्रमण करने लग गए थे लगभग 14 साल तक तुलसीदास जी भ्रमण करते रहे और अंत में तुलसीदास जी 14 साल के बाद वाराणसी पहुंच गए थे और वहां पर वह लोगों को धर्म ,शास्त्र , कर्म आदि की शिक्षा देने लग गए थे

Tulsidas ji की Hanuman Ji से मुलाकात

तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में हनुमान जी से मुलाकात का वर्णन भी किया था ऐसा माना जाता है कि जब तुलसीदास जी वाराणसी में निवास कर रहे थे तो 1 दिन जब तुलसीदास जी बनारस के घाट पर थे तो वहां पर उनकी मुलाकात साधु से हो जाती है जिस साधु से उनकी मुलाकात होती है उस साधु ने भगवा रंग के वस्त्र पहन रखे थे तथा राम का नाम लेते हुए गंगा में स्नान करने के लिए जा रहे थे जैसे ही वहां गंगा घाट की तरफ जाते हैं तो वहां पर वह एक दूसरे से टकरा जाते हैं

जैसे ही वह एक दूसरे से टकराते हैं तो तुलसीदास जी उसे साधु को पहचान लेते हैं और उसे साधु से कहते हैं कि मुझे आपके बारे में सब पता चल गया है आप मुझे कभी छोड़कर नहीं जा सकते ऐसा सुनने के बाद तुलसीदास जी को वह साधु कहता है की “हे तपस्वी भगवान राम आपका भला करेंगे” इस बात को का करी वह साधु गोस्वामी तुलसीदास जी को आशीर्वाद देते हुए वहां से चले जाते हैं तुलसीदास जी को वहां पर इस बात का भी पता चला था कि यदि वह चित्रकूट चले जाएंगे तो वहां पर उनको भगवान राम के दर्शन हो जाएंगे

Tulsidas ji की भगवान Ram जी से मुलाकात

तुलसीदास जी ने अपने द्वारा लिखे गए ग्रंथ रामचरितमानस में एक प्रसंग लिखा था कि जब तुलसीदास जी चित्रकूट के रामघाट में अपना एक आश्रम बनाकर निवास करते थे तो एक दिन वह कुछ समय के लिए कामदगिरि पर्वत पर परिक्रमा करने के लिए चले गए थे जब वह परिक्रमा कर रहे थे तो उस समय उनको घोड़े पर बैठे हुए दो राजकुमार उनकी तरफ आते हुए दिखाई दिए थे तुलसीदास जी ने उन दोनों राजकुमारों को बिल्कुल भी नहीं पहचाना था और न हीं उनके बीच के अंतर को तुलसीदास जी पहचान सके थे

उसके अगले दिन जब तुलसीदास जी एक नदी के किनारे चंदन का लेप बनाने की तैयारी कर रहे थे तो वह दोनों राजकुमार जो कल उनको घोड़े पर सवारी करते हुए दिखाई दिए थे वह दोनों राजकुमार तुलसीदास जी के सामने तपस्वी बनकर आ जाते हैं यह सब देखते हुए तुलसीदास जी उन दोनों तपस्वी को पहचान लेते हैं कि यह भगवान श्री राम है और यह उनका भाई लक्ष्मण है

उसके बाद तुलसीदास जी उन दोनों राजकुमारों से कहते हैं कि भगवान जी में आपको पहचान गया हूं मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए और आपका हमारी इस कुटिया में बहुत-बहुत स्वागत है उसके बाद भगवान श्री राम तुलसीदास जी के द्वारा बनाए गए चंदन के लेप का तिलक मांगते हैं तिलक मांगने पर तुलसीदास जी उनको चंदन का तिलक लगाते हैं और भगवान श्री राम के पैरों को छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं इस प्रकार तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम से अपनी मुलाकात की थी

Tulsidas ji के द्वारा रचित प्रमुख रचनाएं

तुलसीदास जी अपने जीवन काल में लगभग 112 वर्ष दिए थे और अपने 112 वर्ष की इस आयु काल में इन्होंने अनेक रचनाएं भी की थी इनकी प्रमुख रचनाएं निम्न प्रकार से हैं

रचना वर्ष
रामचरितमानस 1574 ई को
वैराग्य संदीपनी 1612 ई को
हनुमान बाहुक 1612 ई को
गीतावली 1612 ई को
श्री कृष्ण गीतावली 1571 ई को
दोहावली1583 ई को
कवितावली 1612 ई को
रामललानहछु 1582 ई को
हनुमान चालीसा 1582 ई को
पार्वती-मंगल1582 ईस्वी

तुलसीदास जी की मृत्यु

तुलसीदास जी ने अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के काव्य रचनाओं की थी तुलसीदास जी ने अपना अंतिम समय वाराणसी में ही गुजरा था तुलसीदास जी अपने अंतिम समय में राम भक्ति में ही लीन रहते थे जब तुलसीदास जी की आयु 112 साल की थी तब 1623 ई को तुलसीदास जी ने अपने शरीर को त्याग दिया था कुछ विद्वान ऐसे भी हैं जो तुलसीदास जी की मृत्यु को 1680 ईस्वी में मानते हैं सभी विद्वानों का अपना अलग-अलग मत है तो इस प्रकार तुलसीदास जी ने अपने जीवन में भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति को दिखाया था

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FAQ :-

Tulsidas ji को बचपन में अन्य किस नाम से जाना जाता था?

तुलसीदास जी को बचपन में रामबोला नाम से जाना जाता था।

Tulsidas ji का जन्म कब हुआ था?

तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज क्षेत्र में 1511 ई को हुआ था।

तुलसीदास जी ने किसकी रचना की थी?

तुलसीदास जी ने 1631 ई में रामचरितमानस की रचना की थी।

तुलसीदास जी के गुरु का नाम क्या था?

तुलसीदास जी के गुरु का नाम नरसिंह दास था।

तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई थी?

तुलसीदास जी की मृत्यु 112 वर्ष की आयु में 1623 ई को हुई थी।

निष्कर्ष :-

उम्मीद करता हूं दोस्तों आपको तुलसीदास का जीवनी, तुलसीदास जी का जीवन परिचय, Tulsidas biography in Hindi, तुलसीदास बायोग्राफी इन हिंदी बहुत पसंद आई होगी क्योंकि हमने आपको यहां पर बिल्कुल आसान एवं सरल शब्दों में तुलसीदास जी का जीवनी समझा दी है यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आता है तो आप इसको सोशल मीडिया पर अवश्य शेयर करें।

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